Monday 2 February 2015

मिलके जाया करो ........


रात सपने में
तेरे कदमों की दबी चाल देखी
हवाएँ चुप नहीं रहतीं
महक हर तरफ़ उड़ा देती हैं
फ़िज़ायें सब्र नहीं करतीं
प्यार की बौछार करा देती हैं
तु चाहे भी चुपके से आना
तेरा दिल ही बागी होकर
धरकनों का शोर सुना देता है
ये जो चूड़ियां तूने पहनी हैं
ये तो हरदम तेरे आने की
खनक सुना देती हैं
चाहे जितना हौले से
तु कदम रक्खे
तेरे पैरों की छूवन से
ज़र्रे ज़र्रे में बहार आ जाती है
तेरे आने की सुराग मिल जाती है

छुप छुप कर क्या तलाश करती हो
मैं तो खुली किताब हूँ
हर पन्ना तेरे से शुरू हो
तेरे नाम पे ही ख़त्म होता है
इस तरहा दबे पांव
ना आया करो
आती हो अगर
तो मिलके जाया करो
कुछ बातें अपनी सुना
और कुछ मेरी सुन के जाया करो
                                         ........इंतज़ार









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