Friday 23 January 2015

हवस........



ना जाने आज मेरी हवस
इतनी आबाद क्यों है
बेखबर प्यार के अंदाज़ से
हराना चाहती है मुझे
और हर उस एहसास को
जो जिये हैं हमने
इसकी अब एक ही ज़िद है
साजिशों से पाने की तुझे !
क्या गलत है ऐसा सोचना भी ?
क्या कमज़ोरी होगी
इसे जीत जाने देना !
तेरा प्यार जो मेरी जन्नत है
मेरी इबादत है
क्या ये उजाड़ देगी इसको
या ये भी एक हिस्सा है
उस चाहत का
तो क्या ये मिलन
हमारे प्यार को सम्पूर्ण बना देगा
या एक कदम उस दिशा में
दाहसंस्कार होगा महोब्बत का !
क्या देह की भूख का अंदाज़ है आत्मा को ?
न जाने आज क्या होगा ......
                                         .......इंतज़ार

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